पलायन (कहिनी)

हमर छेत्र म बियासी होय के बाद विधाता ह रिसागे तइसे लागथे। बरसा के अगोरा म हमर आंखी पथरागे, बरस बे नई करीस। सब्बो धान-पान ह मरगे। गांव के जम्मो किसान बनिहार -भूतिहार मन रोजी-रोटी के तलास म गांव ले पलायन करगे। सब आने-आने सहर डाहर चल दिन हे। तुंहर समधी घर के मन घलो माई पीला चल दे हंवय।
जगतू ह सहरिया जिनगी के दंऊड़-धूप, रात-दिन के हाय-हाय म अपन आधा जिनगी ल पहा डरिस। सहर ले ओकर मन उचटगे। तहांले अपन गांव जामटोला आ के फेर बस गे।
उही साल जगतु ह अपन बेटी सुखिया के बिहाव ल बसनपुरी के बिंझवार घर कर दिस। सुन्दर घर-दुवार अउ हीरा बरोबर दमांद ल पाके जगतु के जिनगी म नवा अंजोर बगरगे। काबर के वोकर एके झन हांडी के सित्था सांही दुलौरिन बेटी रिहीस-सुखिया।
भगवान के किरपा ले असो लगती कुंवार म सुखिया के बेटा होइस। संदेस पाके जगतु अउ ओकर सुवारी के मन मगन होगे। जगतु अपन सुवारी ल किहीस- कस ओ सुखिया के दाई! मैं ह अपन नवा नाती ल देख आतेंव का? भले दिन हो गे हे सुखिया ल घलो नइ देखे हौं। सुखिया के दाई किहीस- जावव ना देख आवव। मोरो मन करथे फेर घर-दुवार के देखइया कोनो नइए। मड़ई बखत मैं देख आहूं। असो बादर पानी ह बइरी बरोबर हिरक के घलो नइ देखय। अंजोरी पाख ह बीतगे फेर अभी तक पानी गिरे के नांव नइ लेय। पोटराय धान वइसने के वइसने खेत में भूंजात परे हावय। जिनगी कइसे जीबो समझ म नइ आवय।
काली बिहनिया चल देव। सुखिया अउ हमर नाती ल देख आहू। एदे बजार दिन नाती बर कपड़ा बिसाय रहेंव। नाती ल पहिरा देहू। अंकाल के सेती बेटी बर लुगरा लेय के ताकत नइए। फेर तीजा-पोरा बर जीयत-जागत रहिबो त पहिराबो।
सुखिया घर जाहू त ओकर ससुर ल एक बात ल अवस के कहू के हमर कती असो पानी नइ गिरीस हे, अकाल परत हे। आठ-दस खंडी धान जीये खातिर चलाय रइही, दिन बादर बने होही त बाढ़ी संग लहुटा देबो। बेटी घर मांगब म सरम लगथे, फेर का करबे समेच्च ह अइसने आ गे हे। अइसे कहत सुखिया के महतारी के आंखी ले आंसू झरगे। जगतु ह चुप कराइस।
सुखिया के दाई मंगली ह लइका के कपड़ा, रोटी-पीठा के जोरा करीस अउ जगतु ल सुखिया घर पठोइस। जगतु ह आज अब्बड़ खुस रिहिस। बिहाव-पठौनी के बाद पहिली घौं जगतु ल अपन बेटी घर जाय के मउका मिले रिहीस। गांव के दुबट्टा म आ के आमातरी जगतु ह बस के अगोरा म बइठे रिहीस। एक ठन बस आइस। जगतु ह रोके बर हाथ देखाइस फेर बस नई रूकीस। बस ह पूरा भरे रहय। बस के ऊप्पर म कांवर, सींका, पेटी, टीपा, खनती, कुदारी अउ रापा जोराय रहय। जगतु ल समझे म टेम नइ लगीस के एती अंकाल परत हे तेकर सेती गरीबहा बनिहार मन अपन गांव ल छोड़ के काम-बूता, रोजी-मजदूरी के तलास म सहर डहर जावत हे।
दूसर बस आइस तउनों म कम भीड़ नइ रिहीस फेर जगतु बर डराइवर के दया ह उलगे का ते अउ जगतु ल बस म चढ़ा लिस। कुंवार के महिना, अउ पानी नइ बरसे रहय तेन अलग। गरमी के मारे जम्मो सवारी के तन-मन ह बियाकुल होगे रहय। बस ह बसनपुरी जाय के मोड़ म अमर गे। जगतु ह बस ल रोकवाइस अउ उतरगे। चाराें डहर ल देखीस त जगतु ह ठाढ़े सुखागे। जगतु ह सोचे लागिस के सुखिया के बिहाव बच्छर तो इहां चारों मुड़ा जंगल रहय। डेढ़ बच्छर म येका होगे भगवान! जंगल ते जंगल, रूख-राई तको नई दीखत हे। तीर म खड़े बर के पेड ल अंताज के जगतु ह बसनपुरी के रद्दा ल धर के चले लगिस। एती के खेत-खार ल देख के जगतु के चेत कउवागे। जिहां धान गहूं के सोनहा बाली झूमय, तिहां ठक-ठक ले परिया भुइयां दीखत रहय। हरियर-हरियर पेड़ पउधा के जघा म ठुठवा पेंड़ोरा मन बांचे रहय।
उदास मन ले सोंचत-सोंचत जगतु बसनपुरी पहुंचीस। गांव ह चारों डहर सुनसान रहय। बिंझवार घर तीर आइस त जगतु ल गाज गिरे कस लागिस। काबर के बिंझवार के घर म तारा लगे रहय। जगतु ह मंझनी-मंझना आय रहय, भूख-पियास के मारे ओकर मुंहू सुखागे रहय। बस्ती म जेती देखय तेती घर म तारा-बेंड़ी लगे हे। बाजू के घर ले मनखे के आरो पाके जगतु ह उहां गीस त गांव के दाऊ ह परसार म एके झन बइठे रहय।
दाऊ ह नवा आदमी देख के बइठे बर किहीस। पानी-चोंगी देवाइस। दाऊ पालन सिंग ह जगतु ले पूछिस- कहां ले आय हौ जी, अउ कहां जावत हौ?
जगतु ह बताइस- मैं ह जामटोला ले आय हौं। बिंझवार के समधी औं। समधी घर म तारा लगे हे, कोनो नइए कहां गे हे ते?
पालनसिंग बताइस हमर छेत्र म बियासी होय के बाद विधाता ह रिसागे तइसे लागथे। बरसा के अगोरा म हमर आंखी पथरागे, बरस बे नई करीस। सब्बो धान-पान ह मरगे। गांव के जम्मो किसान बनिहार-भूतिहार मन रोजी-रोटी के तलास म गांव ले पलायन करगे। सब आने-आने सहर डाहर चल दिन हे तुंहर समधी धर के मन घलो माई-पीला चल दे हवय।
जगतु ह बताइस हमर कती घलो इही हाल हे। पानी के नइ गिरे ले सरी फसल के नास होगे। मोर नवां नाती ल देखहूं कहिके आय रहेंव अउ एती बने समे सुकाल होही ते समधी करा ले थोर बहुत धान मांगहूं कहिके सोंचे रहेंव।
जगतु ह पूछीस- कइसे दाऊजी तुंहर कती तो कभू अंकाल परत नई सूने रहेंव फेर ये पंइत का होगे। एती घलो अंकाल परगे।
दाऊ पालन सिंग ह जगतु ल बताइस के अंकाल-दुकाल कब परथे! जब समे म बरसा नइ होय या जरूरत ले जादा बरसा हो जाथे। बात अइसे हे के जंगल रिहीस त पानी गिरय, अब जंगल नई रहिगे त पानी कइसे बरसही। दुनिया भर के मोटर-गाड़ी, फेक्टरी, मील, कल कारखाना के चिमनी, अउ कतकोन मसीन मन रात-दिन धोइला कहरा उगलथे। इही कारन परियावरन ह खराप होत हवय। अगास म कार्बन-डाय-आक्साइड गेस के तदाद ह बाढ़त हवय। इही पाय के पानी के बूंद बनई म अड़चन होगे तइसे लगथे। जंगल के पेड़-पउधा मन ये खराप हवा ल सुध्द करथें अउ परियावरन ह बने रहिथे। तउनो पेड मन ल मनखे मन जर-मूर ले काट डरिन ता कहां ले पानी बरसही जी जगतु! अउ अंकाल कइसे नइ परही। अंकाल परही त लोगन के पलायन घलो होही। पेट के आगी ल बुताय बर मनखे ह मजबूर हो जथे। जगतु किहीस- दाऊ जी आगू कस पानी गिरय एकर बर हमनला का करना चाही?
दाऊ जी ह बताइस के आगू कस पानी बरसय या अंकाल ल दुरिहाय खातिर जम्मो मनखे मन ल जुरमिल के परियावरन ल बचाय बर कोसिस करना चाही। एकर बर ये भुइंया मन जतका खाली जघा मेड़ पार, भांठा, भुइंया म पेड़-पउधा लगाना चाही। अउ जंगल के कटाई ल रोकना चाही।
जगतु! जंगल जादा रइही त खचित पानी बरसही नइते अवस के साल-साल के अकाल परही। एकर बर पेड़ लगाना ही एके ठन उपाय हे। एकर ले हरेली के संगे-संग प्रकृति घलो सुन्दर होही। परियावरन सुध्द होही अउ समे म पानी बरसही अउ अइसना या गरीब-बनिहार मन के गांव ले पलायन नई होही। संझा होवत रहय जगतु ह दाऊ जी ल बिदा मांगिस अउ मोड़ म आके बर तरी बस के अगोरा म बइठे रिहिस।
गणेश यदु
संबलपुर , जि. कांकेर

Related posts

5 Thoughts to “पलायन (कहिनी)”

  1. bane kahini he.

    badhai……….

  2. आप मन बड सुग्घर कहिनी लिखे हावव………….आप मन ला मोर डहर ले गाडा गाडा जोहार….!!

  3. गणेश भाई जय जोहार
    शिक्षा देवत कहिनी बर साभार

  4. आप मन बड़ सुघड़ कहिनि लिखे। परियावरन सुध होही ओही समै ही पानी बरसही…:) हम बताइस बहुतही मुसकिल भासा है लिखन में.

Comments are closed.